जुलाई 07, 2020

*चौमास*




           *चौमास* आषाढ़ महीना के शुक्ल पक्ष एकादशी ले शुरू होके कार्तिक महीना के शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन खत्म होथे। हमर किसानी जिनगानी के ओ चार महीना जेन खेती किसानी बर अड़बड़ महत्व रहिथे ये चार महीना मा खेत खार मा किसान अउ बनिहार मन खूब सेवा मन लगा के करथे। आषाढ़, सावन, भादो अउ कुंवार इहि चार महिमा मा बोनी, निदाई -कुड़ई ला सुग्घर करथे अउ फसल ला सुघ्घर तैयार करथे। वेद पुराण के हिसाब ले धर्म, कर्म, व्रत-उपवास, ईश्वर के ध्यान, साधना, तंत्र- मंत्र जप अउ दान धरम के पवित्र चार महीना ला चौमास (चौमासा) कहिथे।

*भगवान विष्णु के सोये के बेरा*
        वेद पुराण मा चौमास ला भगवान विष्णु के सोये (शयनकाल) के बेरा बताय हावय। ये चार महीना मा भगवान योग निद्रा मा रहिथे। वेद पुराण के अनुसार भगवान विष्णु हा वामन अवतार ले रहिस हावय। वामन अवतार मा भगवान विष्णु हा राक्षस राज बलि ले तीन पग भुइँया मांगे रहिस हावय अउ राजा बलि तीन पग भुइँया दान करे रहिस हावय। पहली पग मा भगवान वामन हा जम्मो पृथ्वी ला, आकाश ला अउ सब्बो दिशा ला ढंग लिस। दुसरइया पग मा जम्मो स्वर्ग लोग ला ले लिस। तीसरा पग बर कुछ नई बचिस त बलि हा अपन आप ला समर्पित करत भगवान ला अपन मुड़ मा पग ला रखे ला कहिथे।  भगवान बलि के दान ले खुश होके ओला पताल लोक के राजा बनाथे अउ वर मांगे ला कहिथे। राजा बलि भगवान मेर चार महीना पताल लोक मा रहे बर वर माँगथे। तब भगवान बलि के भक्ति ला देख के ओला वरदान देथे की चार मास पताल लोक मा रइही।  इहि चार मास पताल लोक मा भगवान योग निद्रा मा रहिथे। ये चौमास महीना मा वेद पुराण के अनुसार बिहाव, यज्ञ अउ शुभ काम ला नई करय।
*शिव परिवार करथे जग के रेख देख*
            धर्म शास्त्र के अनुसार जग के संचालन अउ रेख देख जगत पालन हार भगवान विष्णु हा करथे, फेर भगवान सोये बर चल देथे त सबो रेख देख जग के संचालन ला भगवान शिव अउ उँकर परिवार हा करथे। ये चौमासा मा शिव अउ उँकर परिवार ले जुड़े सब्बो व्रत तिहार ल मनाय जाथे। सावन महीना हा पूरा भगवान शिव ला समर्पित रहिथे। भक्त मन भगवान के उपवास रखथे अउ खूब पूजा अर्चना करथे। कतको भक्त मन ये महीना मा बाल दाढ़ी नई कटवावय। एकर बाद भादो मास मा भगवान गणेश के दस दिन ले जन्मोत्सव मनाय जाथे। कुंवार महीना मा शारदीय नवरात्रि मा दुर्गा दाई के बड़े धूम धाम ले पूजा भक्ति करथे।
*चौमास के वैज्ञानिक महत्व*
       चौमास के धार्मिक, सामाजिक के संग संग वैज्ञानिक महत्व तको हावय। ये चार महीना मा खान पान मा बड़ सावधानी बरते ला परथे।  बरसात के मौसम होय के कारण ये महीना मा सूरज के रौशनी हा भुइँया मा ढंग से नई पड़य पाय। हवा मा तको नमी रहिथे जेकर कारण बैक्टीरिया, कीड़ा मकोड़ा, छोटे छोटे जीव हवा मा अबड़ पनपथे। भाजी पाला मा नानम प्रकार के कीड़ा मन तको रहिथे। चौमासा मा हमर तन के पाचन शक्ति तको कमजोर रहिथे अउ कतको प्रकार के बीमारी मन तको फइले के डर बने रहिथे। चौमासा मा हल्का पुलका सुपाच्य  खाना खाय बर कहिथे। ये महीना मा मास, मछली खाय बर मनाही रहिथे।
*छत्तीसगढ़ मा चौमास के महत्व*
              हमर छत्तीसगढ़ मा चौमास आषाढ़, सावन, भादो अउ कुंवार महीना के बड़ महत्व हावय। छत्तीसगढ़ राज कृषि प्रधान राज आय अउ इहाँ के जम्मो मनखे मन खेतिहर जिनगी से जुड़े हावय। हमर छत्तीसगढ़ के खेती किसानी के शुरुवात ये चौमासा मा ही होथे बुवाई, रोपाई, निदाई जम्मो कार्य आषाढ़ से कुंवार तक होथे अउ इहि महीना मा ज्यादा रेख देख करे ला परथे। छत्तीसगढ़ मा तिहार के शुरुवात इहि चौमास ले होथे। पहली हरेली तिहार फेर इतिवार या सोमवार (सवनाही) तिहार,नागपंचमी, राखी तिहार, भोजली तिहार, कमरछठ, आठे कन्हैया, तीजा पोरा, गणेश चतुर्थी, पितर पाख अउ मा दुर्गा स्थापना शारदीय नवरात्रि। ये जम्मो तिहार ला छत्तीसगढ़ के लोग बाग मन बड़े धूम धाम से मनाथे। चौमासा मा कभू कभू दिन हा रात बरोबर लगथे काबर की बरखा रानी अपन रंग मा रहिथे ता ऊंखर करिया करिया बादल सुरुज देव् ला ढंग देथे अउ जग हा कुलप अँधियार हो जाथे। इहि चौमास मा नदिया, नरवा, तरिया, बाँध जम्मो लबालब भर जा रहिथे। चारो मुड़ा हरियर हरियर रुख राई देखे बर मिलथे अइसे लगथे जैसे स्वर्ग अउ धरती एक होंगे हावय। प्रकृति अपन चरम सीमा मा रहिथे अउ जन मानस ला अबड़ भाथे। किसान अउ बनिहार मन प्रकृति के बड़ मजा लेवत घाम, भूख - प्यास अउ दुख पीड़ा बुलाये खेतिहर काम ला करत रहिथे। कभू कभू ये चौमास मा बरखा रानी पानी नई गिराय अउ अकाल होय के डर रहिथे ता जम्मो परब मा किसान अउ बनिहार मन के पीड़ा ला छलकत देखे जा सकथे।
*छत्तीसगढ़ साहित्य मा चौमास
        मँय सुरता करावत हव हमर पुरखा कवि  अउ लेखक मन ला जेमन कतका सुघ्घर चौमास के बखान करे हावय................
1) *कवि कपिलनाथ कश्यप जी  के लेख "चौमासा"  मा पूरा चौमास के सुघ्घर बखान हावय। ऊँखर लेख चौमासा ला पढ़े मा मन ला विभोर कर देथे। 
2) जनकवि कोदूराम "दलित" जी के कविता ला देखव कतका सुग्घर बखान करे हावय.......
गीले होगे मांटी, चिखला बनिस धुरी हर,
बपुरी बसुधा के बुताइस पियास हर।
हरियागे भुइयां सुग्धर मखेलमलसाही,
जामिस हे बन, उल्होइस कांदी-घास हर।।
जोहत रहिन गंज दिन ले जेकर बांट,
खेतिहर-मन के पूरन होगे आस हर।
सुरुज लजा के झांके बपुरा-ह-कभू-कभू,
"रस-बरसइया आइस चउमास हर"।।
3) जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी के एक गीत ला देखव ......
*सावन आगे आबे आबे आबे संगी मोर*
रहि-रहि के माँदर कस बाजत अगास मा
खेती-खार छ्लछलावय, रिमझिम बरसात मा
तरिया ताल लबलबावय, नरवा नदिया डबडबावय
पुरवइया नीक लागे हो…...
झुलवा बँधागे पीपर-आमा के थांग मा
आगे हरेली, मजा लागय झूमर नाच मा
जुड़ जुड़हा सिपा मारय, घुर घुरहा हिया काँपय
पुरवइया नीक लागे हो…..
4) *कुंज बिहारी चौबे* (क्रांतिकारी कवि)
रहि रहि के गरजत हे बादर जी
बड़े बिहिनिया ले करे हे झक्कर जी
रुमझुम रुमझुम बरिसत हे पानी
कइसे मँजा के मोर खेती किसानी
रेंग बइला झप झप, झिन कर आंतर
चल मोर भइया बियासी के नांगर।
5) कवि *लाला जगदलपुरी* जी
खेती ला हुसियार बनाये बर
भुइयाँ मा बरखा आथे।
जिनगी ला ओसार बनाये बर
भुइयाँ मा बरखा आथे।
सोन बनाये बर माटी ला
सपना ल सिरतोन करे बर
आँसू ला बनिहार बनाये बर
भुइयाँ मा बरखा आथे।
6) पुरखा कवि *हरि ठाकुर* जी
भरगे ताल तरैया भैया भरगे ताल तरैया।
झिमिर झिमिर जस पानी बरसे
महकै खेतखार के माटी
घुडुर घुडुर जस बादर गरजै
डोलै नदिया परबत घाटी
नांगर धरके निकलिन घर से, सबै किसान कमैया।।
    
         अब मँय नवा कवि डहर आप सब मन के ध्यान ला लेगत हौवव। खासकर के छंद परिवार के कवि मन डहर जौन सुघ्घर सुघ्घर अलग अलग छंद मा सुघ्घर रचना करे हावय........
1) चौमास (शिव छंद)-जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया" के कविता के एक अंश ला देखव......
घन घनन घनन करे। सन सनन पवन करे।
रझ रझारझ जल झरे। खेत खार सर भरे।
चंचला चमक चमक। नैन मुँद तमक तमक।
नाचथे असाड़ मा। बन नदी पहाड़ मा।
2) *कुण्डलिया छंद--आशा देशमुख जी* के
*असाढ़* मा देखव.........
आगे हवय असाढ़ अब,हाँसत हवँय किसान।
नॉगर बइला ला धरे, अउ टुकनी मा धान।
 अउ टुकनी मा धान,खेत कोती जावत हें।
मन मा खुशी अपार,गीत मन भर गावत हें।
पानी बरसत देख,ताप भुइयाँ के भागे।
खेती मीत असाढ़,झमाझम नाचत आगे।
*3) वाम सवैया - बोधन राम निषादराज जी* के कविता मा देखव.......
भरे अब सावन मा धनहा अब देख किसान जुड़ावत हावै।
बियास करे सब धान ल देखव मूड़ उठा लहरावत हावै।।
इहाँ भुइँया सब डाहर सुग्घर सावन मा हरियावत हावै।
छमाछम बूँद ह नाचत गावत शोर घलो बगरावत हावै।।
*4) दुर्मिल सवैया जगदीश हीरा साहू जी* के *बरसे बदरा* के कविता ला देखव........
बरसे बदरा बिजली चमके, सुन झींगुर गीत सुनावत हे।
छइँहा खुसरे बइला गरुवा, सब जा परछी सकलावत हे।।
दबके बइठे मनखे घर मा, घबरावय जीव लुकावत हे।
नइ रेंगत हे रसता मनखे,  मन मा डर आज सतावत हे।।
*2) बरखा रानी सार छंद- हेमलाल साहू* जी के कविता के एक अंश देखव......
करिया करिया बादर देखत, हाँसत हे जिनगानी।
सबके मन मे आस जगत हे, आही बरखा रानी।1।
रुमझुम रुमझुम पानी बरसे, खड़े किसान दुवारी।
सावन भादो महिना आगय, रात लगे अँधियारी।।2।
         ये प्रकार ले छत्तीसगढ़ साहित्य मा जुन्ना मन के बाद नवा पीढ़ी के बहुत झन कवि मन चौमास के बखान करे हावय सबके रचना ला सामिल करहूँ त बहुत लम्बा लेख हो जाही ।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा

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