डण्डा के दिन बादर राहय जेठिया दाई जोन 90 साल के डोकरी होगे हे। मुधियार के बेरा मा भूरी बार के तापत बइठे नाती टुरा मन के रद्दा देखत रहिथे रोज इहि मेरा सकला के भूरी तापथे अव डोकरी दाई मेरा कहनी सुनथे अव सीख लेथे। बुधारू टपकथे पा लागी डोकरी दाई खुसी रा बेटा एकक एकक झन करके सब्बो टुरा मन सकला जाथे। बुधारू, समारू,दुकालू, सुकालू, आमरु सबो आके भूरी तापे बर बईठ गे। समारू हा थोकिन चटरहा रहिथे चटर चटर मारत रहिथे। समारू दाई लेना बने कहनी सुना न ओ सुकालू हा दाई सुना न ओ तोर जवाना के कहनी डोकरी दाई हा मुड़ ला हलावत कहिथे ले भई ठीक हे सुना हूँ। अरे सुकालू जातरे बेटा मोर मोटरा मा बाजार के लाडु होही तेन ला निकाल के लाबे। दाई के बात ला सुनके सबो टुरा मन खिलखिला के हस भरते सुकालू हा ये मोटरा का होथे दाई हम तो नी जानन ओ सबो टुरा हा हा दाई का होथे। दाई हा ओ देख परछी के खुटी मा झोला टगे हे न ओहि हा मोटरा हरे समारू हा त हम का जानी दाई झोला ला मोटरा कहिथे कहिके। सुकालू हा झोला के लाड़ू ला ला के दाई ला देथे दाई हा लाड़ू ला सब्बो झन ला बाटथे। बुधारू हा झोला ला मोटरा कहिथे मोला तो कुछू नी समझ में आत हे लाड़ू खात खात दाई मेरा पूछते दाई बता न कइसे मा मोटरा के नाम झोला हरे सबो झन मिलके हा हा दाई बताना। त सुनव तुमन बने कान दे के पहली हमार जवाना मा ये झोला नी चलत रहिस हे मोटरा उव गठरी चलय। मोटरा हा बड़े होथे जेला अपन सामान के हिसाब ले जतका बड़ बना ले अव गठरी हा ओकर छोटे रूप आय। पहली हमन कुछू लाना हे या लेगना हे या गांव जाना हे ते मोटरा गठरी बनाके समान ला भर के मुड़ मा बोहिके लेगन या जान फेर समय बदलत गिस उव आज उही हा धीरे धीरे झोला के रूप ले लीस। झोला हा आज जइसन तुमन पाछू मा लदक के लेगथव रे दुकालू हा झट से हा दाई ओला बैग कहिथन हा बेग के रूप लेलिस। मोटरा मा हमन बड़े समान ला रखन उव गठरी मा छोटे छोटे समान ला जइसे रुइया पाइसा, गहना गुठी ला बने गठिया के रखन। मोटरा मा हमन बड़े बड़े समान ला लाने लेगे के बुता या गांव जान त बाजार जान त लेगन। समारू हा वाह दाई कतका बढ़िया जानकारी देव। डोकरी दाई हा लेवा रे खाये के बेरा होगे भूरी के आगी तको कनझा गे। लेवा फेर काली एतके बेरा बैठबो त फेर कुछू नवा गोठ ला गोठियाबो ले चलव घर के मन जोहत हो ही खाये के बेर हा होगे। सबो झन हव दाई आमरु हा मजा आगे दाई मोटरा गठरी के बारे मा जानके सबो टुरा जात जात हा हा दाई मजा आगे।
दिनांक 20-03-2016
-हेमलाल साहू
माटी दाई के मया, अचरा के हे छाँव। सुघ्घर माटी मोर हे, माटी माथ नवाँव।। उत्ती बेरा के जिहाँ, चिरई बोलय चाॅव । इहि माटी मा हे बसे, मोरो सुघ्घर गाॅव ।। मोर गद्य रचना कोठी
मार्च 20, 2016
मोटरा-गठरी
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